
देश में फैटी लिवर, मेनोपॉज़ समस्या, पोषण कमी, बच्चों में मोटापा और गैर-संचारी रोगों के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं
मुंबई, 7 अप्रैल 2025: अपोलो हॉस्पिटल्स ने आज अपनी ‘हेल्थ ऑफ द नेशन 2025 (एचओएन- 2025) रिपोर्ट के पांचवें संस्करण का लॉन्च किया, जो स्पष्ट रूप से संदेश देती है कि ‘लक्षणों का इंतज़ार न करें- निवारक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।’’ देश भर में अपोलो सिस्टम से 2.5 मिलियन लोगों की स्वास्थ्य जांच पर आधारित यह रिपोर्ट एक मूक महामारी का खुलासा करती है, जिसके अनुसार लाखों लोग क्रोनिक बीमारियों से पीड़ित हैं जबकि उनमें इन बीमारियों के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। उल्लेखनीय है कि इनमें से 26 फीसदी लोग हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) का शिकार हैं और 23 फीसदी डायबिटीज़ से पीड़ित हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि लक्षणों पर आधारित हेल्थकेयर मॉडल अब व्यवहारिक नहीं रहा।
अपोलो के ‘हेल्थ ऑफ द नेशन 2025’ रिकॉर्ड के मुताबिक निवारक स्वास्थ्य जांच अब कई गुना बढ़ गई है 2019 में एक आंकड़ा 1 मिलियन था जो 5 सालों में 150 फीसदी बढ़कर 2024 में 2.5 मिलियन पर पहुंच गया है। ये आंकड़े आम जनता में बढ़ती जागरुकता और निवारक स्वास्थ्य जांच के बढ़ते महत्व की ओर इशारा करते हैं। एचओएन 2025 के रूझान अपोलो के अस्पतालां, क्लिनिकों, डायग्नॉस्टिक लैब्स एवं वैलनैस सेंटरों में इलेक्ट्रिनिक मेडिकल रिकॉर्ड्स (निवारक स्वास्थ्य जांच के ईएमआर), संरचित क्लिनिकल जांच एवं एआई-उन्मुख जोखम स्तरीकरण से जुटाए गए हैं। यह रिपोर्ट तात्कालिक स्वास्थ्य की तीन चुनौतियों पर ध्यान केन्द्रित करती हैः फैटी लिवर रोग, मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य में गिरावट और बचपन में मोटापा। ये आंकड़े जल्द से जल्द व्यक्तिगत हस्तक्षेप एवं जीवनशैली पर आधारित देखभाल के मॉडल्स की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
डॉ प्रताप रेड्डी, चेयरमैन, अपोलो हॉस्पिटल्स ने कहा,‘‘भारत में हर परिवार को स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर स्वस्थ एवं खुशहाल परिवार बनने का अवसर मिलना चाहिए। निवारक स्वास्थ्य देखभाल अब केवल भावी महत्वाकांक्षा नहीं रही- यह देश के कल्याण का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। यह रिपोर्ट हर नागरिक को जागरुक एवं सशक्त बनाने, जल्द से जल्द हस्तक्षेप करने और स्क्रीनिंग की आवश्यकता पर ज़ोर देती है। समय आ गया है कि निवारक देखभाल को हर शैक्षणिक पाठ्यक्रम, कॉर्पोरेट नियोजन एवं पारिवारिक दिनचर्या में शामिल किया जाए। ऐसा करके ही हम बीमारियों के इलाज के बजाए स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने पर ध्यान दे सकते हैं तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ एवं सशक्त भारत को सुनिश्चित कर सकते हैं।’’
अपोलो हॉस्पिटल्स द्वारा विभिन्न राज्यों में की गई जांच के परिणाम आगे देखे :
फैटी लिवर भारत का नया मेटाबोलिक सिगनल :एक समय था जब माना जाता था कि फैटी लिवर सिर्फ उन्हीं लोगों को होता है जो शराब का सेवन करते हैं, लेकिन आज मोटापे, डायबिटीज़ एवं उच्च रक्तचाप के चलते भी फैटी लिवर के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। 257,199 लोगां की जांच में 65 फीसदी में फैटी लिवर पाया गया, खास बात यह है कि इनमें से 85 फीसदी लोग शराब का सेवन नहीं करते हैं। इनमें से आधे से अधिक लोगों में रक्त जांच के परिणाम ठीक है- इन आंकड़ों से साफ है कि निदान के पारम्परिक तरीके अब जांच के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
महिलाओं का स्वास्थ्य : एचओएन 2025 रिपोर्ट से साफ है कि मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य में अचानक गिरावट आती है। मेनोपॉज़ से पहले डायबिटीज़ के 14 फीसदी मामले पाए गए वहीं मेनोपॉज़ के बाद यह आंकड़ा 40 फीसदी दर्ज किया गया। इसी तरह ओबेसिटी की संभावना भी 76 फीसदी से बढ़कर 86 फीसदी हो गई और फैटी लिवर के मामले 54 फीसदी से बढ़कर 70 फीसदी पर पहुंच गए। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि हॉर्मोनल बदलाव का महिलाओं के स्वास्थ्य पर गहरा असर होता है। ऐसे में महिलाओं के लिए ज़रूरी है कि मेनोपॉज़ की अवस्था में पहुंचने पर वे अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए सक्रिय एवं व्यक्तिगत दृष्टिकोण अपनाएं।
बच्चों में ओबेसिटी यानि मोटापे के बढ़ते मामले : छात्रों में ओबेसिटी के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गहरा खतरा है। रिपोर्ट के अनुसार प्राइमरी स्कूल के 8 फीसदी छात्रों का वज़न सामान्य से अधिक पाया गया। किशोरावस्था तक ये आंकड़े और अधिक बढ़ जाते हैं और कॉलेज छात्रों में बढ़कर 28 फीसदी तक पहुंच जाते हैं। साफ है कि छात्रों को अपनी जीवनशैली एवं आहार में बदलाव लाने की ज़रूरत है। इसके अलावा 19 फीसदी कॉलेज छात्रों में प्री-हाइपरटेंशन पाया गया, इससे स्पष्ट है कि गैर-संचारी रोग अब कम उम्र में ही होने लगे हैं।
हाइपरटेंशनः 2024 में 450000 लोगों की जांच में 26 फीसदी में हाइपरटेंशन पाया गया, जिनमें इसके कोई लक्षण नहीं थे। भारत में हाइरटेंशन दिल की बीमारियों का मुख्य कारण है और ज़्यादातर मामलों में इसका निदान एवं उपचार समय पर नहीं किया जाता। ऐसे में यह रिपोर्ट ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग और सार्वजनिक स्वास्थ्य जांच अभियानों की आवश्यकता पर ज़ोर देती है, ताकि बीपी जांच को वैलनैस दिनचर्या में शामिल किया जाए।
छिपी दिल की बीमारियां: जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं थे, उनमें कोरोनरी कैल्शियम स्कोरिंग करने पर 46 फीसदी में कैल्शियम डिपोज़िट पाए गए, जो आथरोस्क्लोरिसस का संकेत हैं। इनमें से 25 फीसदी लोग कंस्ट्रक्टिव कोरोनरी आर्टरी रोग (सीएडी) से पीड़ित थे। इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात यह है कि कैल्शियम डिपोज़िट वाले 2.5 फीसदी में व्यक्ति की उम्र 40 से कम थी। ये आंकड़े इमेजिंग की आधुनिक तकनीकों जैसे कैल्शियम स्कोरिंग एवं सीटी एंजियोग्राफी की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं ताकि ऐसे रोगों के जोखिम को जल्द से जल्द पहचाना जा सके।
मानसिक स्वास्थ्यः भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चर्चाओं में हमेशा से मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी की जाती रही है 47,424 से अधिक लोगों में पीएचक्यू-9 स्केल पर डिप्रेशन की स्क्रीनिंग की गई, इनमें 7 फीसदी महिलाओं और 5 फीसदी पुरूषों में डिप्रेशन के संकेत पाए गए। मध्यम उम्र (40-55) में यह बोझ सबसे अधिक है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट एक बड़ी चुनौती है और इस पर जल्द से जल्द ध्यान देने की ज़रूरत है। अपोलो हॉस्पिटल्स नियमित स्वास्थ्य जांच में मानसिक स्वास्थ्य जांच को शामिल करने, डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म्स के उपयोग तथा सामुदायिक स्तर पर जागरुकता बढ़ाने की सलाह देता है। ताकि इस मुद्दे पर खुल कर बात की जाए और मरीज़ों को समय रहते उचित देखभाल मिले।
ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) : हेल्थ ऑफ नेशन 2025 रिपोर्ट हैरान कर देने वाले आंकड़ों पर रोशनी डालती हैः हर 4 में से 1 भारतीय ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया के जोखिम पर है- यह डिसऑर्डर मोटापे, दिल की बीमारियों और दिन भर थकान से जुड़ा है। 53000 लोगों की जांच में 33 फीसदी पुरूषों और 10 फीसदी महिलाओं में ओएसए का जोखिम पाया गया। उम्र के साथ यह जोखिम और बढ़ जाता है, 55 से अधिक उम्र के 68 फीसदी पुरूष और 22 फीसदी महिलाएं इससे पीड़ित हैं। इतने बड़े पैमाने पर आंकड़ों के बावजूद इनका निदान नहीं किया जाता और लोग अक्सर इसे थकान या तनाव समझ लेते हैं। अपोलो का सुझाव है कि नियमित जांच में स्लीप एप्निया की जांच भी की जानी चाहिए। ओएसए के लक्षणों के बारे में जागरुकता बढ़ाना, कार्यस्थल पर वैलनैस प्रोग्राम लागू करना ज़रूरी है ताकि निवारक देखभाल में नींद की समस्याओं के समाधान को भी शामिल किया जाए।
कैंसर की जांचः 2024 में सरवाइकल कैंसर की औसत उम्र 49, स्तन कैंसर की 57 और फेफड़ों के कैंसर की औसत उम्र 61 दर्ज की गई, पूरे दशक में यह औसत विश्वस्तरीय औसत से पहले रहा। रिपोर्ट के अनुसार शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित जांच एवं जागरुकता के द्वारा उम्र के इस औसत को बदला जा सकता है।
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमीः 45 फीसदी महिलाएं और 26 फीसदी पुरूष एनीमिया से पीड़ित हैं। 77 फीसदी महिलाएं और 82 फीसदी पुरूषों में विटामिन डी की कमी है। विटामिन बी12 की बात करें तो 38 फीसदी पुरूषों और 27 फीसदी महिलाओं में इसका स्तर कम है। 40 से कम उम्र में ये आंकड़े और और भी गंभीर हैं- इस उम्र में 49 फीसदी पुरूषों और 35 फीसदी महिलाओं में विटामिन बी12 की कमी है। अगर इन समस्याओं को हल नहीं किया जाता तो उर्जा स्तर, संज्ञानात्मक स्तर और मेटाबोलिक फंक्शन पर असर हो सकता है। अपोलो का सुझाव है कि देश भर में पोषण और दीर्घकालिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए जागरुकता बढ़ाना ज़रूरी है।
मोटापा एवं मेटाबोलिक विकारः रिपोर्ट के अनुसार जांच किए गए 61 फीसदी लोग ओबेसिटी से पीड़ित हैं, 18 फीसदी का वज़न सामान्य से अधिक है। मोटापा गैर संचारी रोगों के मुख्य कारणों में से एक बना हुआ है। अपोलो के अनुसार स्कूलों एवं कार्यस्थल पर इस विषय पर जागरुकता बढ़ाना ज़रूरी है। साथ ही बीएमआई एवं मेटाबोलिक जांच को सालाना स्वास्थ्य जांच में शामिल किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य के जोखिम को हल कर और लोगों को व्यक्तिगत देखभाल के लिए मार्गदर्शन देकर यह प्रोग्राम बीमारी के आगे बढ़ने से पहले इसकी संभावना को कम कर देता है, जिससे जटिल उपचार की ज़रूरत नहीं रहती। रिपोर्ट के अनुसार समय रहते बीमारी के जोखिम को पहचानना, जीवनशैली में बदलाव लाना और नैदानिक सेवाओं की एक समान सुलभता को सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
भारतियों का ‘हेल्थ ऑफ द नेशन 2025′ रिपोर्ट जारी