उर्दू का जादू, एहसासों का समंदर और अदब की रोशनी… सब कुछ एक ही मंच पर देखने को मिला — बहार-ए-उर्दू के दूसरे दिन!
मुंबई के डोम एसवीपी स्टेडियम, वर्ली में महफिल ऐसी सजी कि महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी के 50 साल पूरे होने पर ये शाम बन गई, अदब और जज़्बात का असली त्योहार!
सुबह का जोश — नई आवाज़ें, नए एहसास।।
दिन की शुरुआत हुई एक ओपन माइक मुशायरा से — जहाँ नई पीढ़ी के शायरों ने अपनी शायरी और जज़्बात से दिल जीत लिया।
क़य्याम शाह, अहद सईद, पायल पांडेय, ज़ैन लख़नपुरी, रियाज़ आसी, शौकत अली, अदनान शेख, मयंक वर्मा, इमरान अताई और मक़सूद आफ़ाक़ ने अपने शब्दों से महफिल को रोशन कर दिया।
हर शेर, हर मिसरा — जैसे किसी दिल की धड़कन को आवाज़ दे रहा हो।
अदब और टेक्नोलॉजी का संगम।
इसके बाद शुरू हुआ इल्म और सोच का सफर।
🖋️ “महाराष्ट्र में उर्दू अदब” — डॉ. तबस्सुम ख़ान के संचालन में हुआ, जिसमें डॉ. शेख अहरार अहमद, डॉ. क़ाज़ी नवीन सिद्दीकी, डॉ. अब्दुल्लाह इम्तियाज़ अहमद और प्रो. शाहिद नौख़ेज़ ने उर्दू के सफर और उसके बदलते रंगों पर गहरी बातें कीं।
अगला सेशन था “मॉडर्न टेक्नोलॉजी एंड उर्दू” — मोहम्मद इरफ़ान रज़ा के नेतृत्व में डॉ. मोहम्मद तबिश ख़ान, डॉ. लियाक़त अली, डॉ. परवेज़ अहमद और डॉ. महमूद मिर्ज़ा ने बताया कि उर्दू अब डिजिटल दुनिया में भी अपनी नई पहचान बना रही है।
शाम का सफर — तम्सीली मुशायरा और सूफ़ियाना रंग।।
शाम ढली तो मंच पर ज़िंदा हो उठे उर्दू के लीजेंड्स!
ज़ाहिद अली सय्यद, मनज़ूर इस्लाम, साजिद ए. हामिद, रज़िया बेग, नोमान ख़ान, नुज़हत परवीन अकील काग़ज़ी, तल्हा बी सावर हाशमी, मोहसिन हुस्नुद्दीन शेख और ख़ान शादाब मोहम्मद ने मिर्ज़ा ग़ालिब, ताहिर फ़राज़, अंजुम रहबर और उबैद आज़म आज़मी जैसे महान शायरों के किरदारों को जिंदा कर दिया।।
इसके बाद फ़ौज़िया दस्तांगोई की दस्तानगोई— जैसे हर लफ़्ज़ आंखों के सामने तस्वीर बन गये।
और फिर झेलम सिंह ने “नित्त खैर मांगां,” “मेरे ढोलना,” और “दमादम मस्त क़लंदर” गाकर सूफ़ियाना रंग बिखेर दिया।
उर्दू के सिपाही — जो इस ज़ुबान को ज़िंदा रखे हुए हैं।
शाम का सबसे खूबसूरत पल था एवॉर्ड सेरेमनी — जहाँ उन लोगों को सम्मानित किया गया जो उर्दू को अपने लेखन, पत्रकारिता और शिक्षा के ज़रिए ज़िंदा रखे हुए हैं।
पुरस्कार दिए गए उभरते लेखकों, पत्रकारिता, डिज़ाइन, शैक्षणिक सेवा, विश्वविद्यालय और स्कूल स्तर पर।
हर इनाम एक नई उम्मीद, एक नई रौशनी की तरह था।
और जब साबरी ब्रदर्स की क़व्वाली गूंजी — तो पूरी महफ़िल सूफ़ियाना एहसास में डूब गई!
आख़िरी अल्फ़ाज़…
बहार-ए-उर्दू दिवस 2, सिर्फ़ एक कार्यक्रम नहीं था — ये था एक ज़िंदा जज़्बा, एक संस्कृति का उत्सव, जहाँ उर्दू बोली नहीं गई, महसूस की गई।
उर्दू आज भी वैसी ही है, ज़िंदा, खूबसूरत और दिलों में बसी हुई।
उर्दू कोई ज़ुबान नहीं, एक एहसास है — और ये एहसास हर दिल में धड़कता है।।
✍️ लेखक: अमन दीप वालिया , मुंबई, 7 अक्टूबर 2025 , 9619704259 , www.thenewsbox.co.in
बहार-ए-उर्दू दिवस 2 — जज़्बात, कलाम और सेलिब्रेशन का परफ़ेक्ट जश्न!


